इलेक्टोरल बॉन्ड | चुनावी बांड मामला क्या है | Electoral Bond
इलेक्टरल बॉन्ड्स की वैधता पर सवाल उठाते हुए ADR, कॉमन काज और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत पांच पेटीशनर सुप्रीम कोर्ट गए थे । सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर निर्णय दिया गया एवं इसे 15 फरवरी 2024 को असंवैधानिक बताकर इस पर रोक लगा दी । चुनावी बांड मामला जिसे इलेक्टरल बॉन्ड भी कहा जाता है को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 15 फरवरी को असंवैधानिक करार दिया गया एवं इस चुनावी बांड या इलेक्टोरल बांड योजना को रद्द कर दिया । भारत के मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों वाली पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19 (1)(h) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है एवं असंवैधानिक है । यह योजना आरटीआई या सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है । इसे जारी करने वाली बैंक तुरंत इन्हें जारी करना बंद करें ।
चुनावी बांड योजना कब से लागू है ।
इस योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए सन 2018 में लाया गया था । इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नगद चंदे की जगह पर लाया गया था । इस योजना को सबसे पहले 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह योजना पेश की थी । इस योजना को केंद्र सरकार द्वारा 9 जनवरी 2018 को इसे लागू किया गया ।
इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम से पहले चंदा कैसे देते थे |
इस स्क्रीन से पहले ₹20000 तक नगद चंदा देने वालों की जानकारी दो ही गुप्त रखा जाता था | इसके इससे ज्यादा चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी | तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 20000 से कम कर ₹2000 कर दिया था | मतलब ₹2000 तक नगद झंडा देने वालों की जानकारी को गुप्त रखा जाता था एवं उससे ज्यादा चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी | इसके पश्चात यह इलेक्टोरल बॉन्ड आए इसमें सभी की जानकारी को गुप्त रखा जाता है एवं इसकी जानकारी चुनाव आयोग को भी नहीं दी जाती है |
क्या है यह चुनावी बांड या इलेक्टोरल बांड योजना
इसे सरल भाषा में कहा जाए तो यह चुनावी बॉन्ड या इलेक्टोरल बॉन्ड पैसे देने का एक साधन है जो कंपनियां अथवा व्यक्तियों की पहचान को उजागर किए बिना राजनीतिक दलों को आर्थिक मदद करने की अनुमति देता है । यह एक वचन पत्र के समान है जिसे कोई भी नागरिक या कंपनी या कॉरपोरेट एसबीआई की कुछ चुनी हुई शाखाओ से खरीद सकता है और अपने पसंद के दल को गुप्त तरीके से दान कर सकता है ।
मुख्य बिंदु
यह बॉन्ड आप केवल स्टेट बैंक आफ इंडिया (SBI) से ही खरीद सकते हैं इसके अलावा किसी भी बैंक से नहीं खरीद सकते ।
यह बांड किसी भी बैंक के पास नहीं मिलेंगे ।
चुनावी बांड टैक्स के बारे में भी नहीं आते हैं और ना ही इन पर किसी तरह का ब्याज दिया जाता चंदा देने वालों की जानकारी को पूर्णता गुप्त रखा जाता है ।
इनके द्वारा आप किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकते हैं ।
चंदा देने के लिए आपको आपको सिर्फ यह इलेक्टोरल बांड खरीदना होता है ।
किस पार्टी को और कितना चंदा दिया गया। यह सब गुप्त होता है ,राजनीतिक पार्टी को भी पता नहीं होता कि उसके लिए किसने ,कितना चंदा दिया है । इन इलेक्टरल बॉन्ड्स की जानकारी सिर्फ एसबीआई को ही होती है । जनता और यहां तक के चुनाव आयोग भी इस बारे में नहीं जान सकते कि किस पार्टी को किसने एवं कितना चंदा दिया है ।
यह बॉन्ड आप केवल स्टेट बैंक आफ इंडिया (SBI) से ही खरीद सकते हैं इसके अलावा किसी भी बैंक से नहीं खरीद सकते ।
यह बांड किसी भी बैंक के पास नहीं मिलेंगे ।
चुनावी बांड टैक्स के बारे में भी नहीं आते हैं और ना ही इन पर किसी तरह का ब्याज दिया जाता चंदा देने वालों की जानकारी को पूर्णता गुप्त रखा जाता है ।
इनके द्वारा आप किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकते हैं ।
चंदा देने के लिए आपको आपको सिर्फ यह इलेक्टोरल बांड खरीदना होता है ।
किस पार्टी को और कितना चंदा दिया गया। यह सब गुप्त होता है ,राजनीतिक पार्टी को भी पता नहीं होता कि उसके लिए किसने ,कितना चंदा दिया है । इन इलेक्टरल बॉन्ड्स की जानकारी सिर्फ एसबीआई को ही होती है । जनता और यहां तक के चुनाव आयोग भी इस बारे में नहीं जान सकते कि किस पार्टी को किसने एवं कितना चंदा दिया है ।
किस पार्टी को चंदा दे सकते हैं
केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को ही चंदा मिल सकता है । जो पार्टी रिप्रेजेंटेशन आफ पीपल्स एक्ट 1951 के तहत रजिस्टर्ड हो और उस पार्टी को विधानसभा चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट मिला हो ।
इलेक्टरल बॉन्ड कैसे जारी होता है
इलेक्टरल बॉन्ड 1000 लाख 1 करोड़ के रूप निश्चित रकम के होते थे । खरीदने वाले इन्हें एसबीआई से खरीद कर पार्टी को देते थे और पार्टी उस केस कर सकती थी इसमें देने वाले या डोनर अपनी पहचान सामने लाए बिना पार्टी को चंदा दे सकता था । चुनावी बांड के तहत चंदा देने के लिए रकम निश्चित होती है । इस निश्चित रकम को ही डोनेट कर सकते हैं । डोनर चाहे तो एक से ज्यादा बॉन्ड भी खरीद सकता है । यह स्कीम केंद्र सरकार द्वारा 2018 में लाई गई थी इन बंद पर खरीदने वाले का नाम नहीं होता है इन्हें कोई भी खरीद सकता था जिसके पास बैंक खाता हो एवं उसे खाते का केवाईसी हुआ हो । इलेक्टरल बॉन्ड सिर्फ 15 दिनों के लिए ही वैध हैं ।
क्या चुनावी बांड पर निवेश करने पर रिटर्न मिलता है
नहीं इस पर आधिकारिक तौर पर कोई भी रिटर्न नहीं मिलता था यह इलेक्टोरल बॉन्ड एक रसीद के समान होता था ।
क्या इलेक्टोरल बॉन्ड में निवेश करने पर टेक्स में छूट मिलती है
इलेक्टरल बॉन्ड में निवेश करने पर दी गई रकम पर इनकम टैक्स की धारा 80 GCCऔर धारा 80GGBके तहत छूट देने का प्रावधान रखा गया था ।
चुनावी बांड का मकसद क्या था
इस योजना का मुख्य मकसद था राजनीतिक फंडिंग के मामलों में पारदर्शिता लाना इसके जरिए अपने पसंद की पार्टी को दान दिया जा सकता था।
चुनावी बांड की शुरुआत कब हुई
इसकी शुरुआत 29 जनवरी 2018 को एनडीए सरकार द्वारा यह इलेक्टोरल बांड योजना 2018 को अधिसूचित किया गया था उसी दिन से इसकी शुरुआत हुई ।