| पंचकोश सिद्धांत क्या हे | Panchkosha Siddhant Kya He |

 पंचकोश सिद्धांत क्या हे | Panchkosha Siddhant Kya He |

पंचकोश भारतीय दार्शनिक और योग साहित्य में वर्णित पांच आवरण या परतों को संदर्भित करता है जो मानव अस्तित्व के विभिन्न स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह अवधारणा उपनिषदों में विशेष रूप से तैत्तिरीय उपनिषद में विस्तार से वर्णित है। इसके अनुसार अन्नमय कोश से आरंभ होकर आनंदमय कोश तक हमारे अस्तित्व के पांच आवरण होते हैं, जिन्हें कोश कहते हैं।

 स्थूल शरीर जो हमें दिखाई देता है, अन्नकोश है । सूक्ष्म शरीर प्राणिक ऊर्जा से बना है। उसे प्राणमय कोश कहते हैं। तीसरा कोश, मनोमय कोश है, जिसमें व्यक्ति की भावना एवं संवेग  सम्मिलित हैं। चौथा विज्ञानमय कोश है। इसमें कल्पना, स्मृति, ज्ञान, अंतर्दृष्टि और समझ आते हैं। पांचवा आनंदमय कोश है इसकी विशेषताओं में रचनात्मकता, प्रसन्नता और आनंद आते हैं। पंचकोश निम्नलिखित है।

| पंचकोश सिद्धांत क्या हे | Panchkosha Siddhant Kya He |

1.अन्नमय कोश (Annamaya Kosha),भोजन आवरण:- यह सबसे बाहरी कोश होता है और शारीरिक शरीर अथवा स्थूल शरीर का प्रतिनिधित्व करता है, जो भोजन और पोषण से बना होता है । इसका संबंध भौतिक और शारीरिक अस्तित्व से होता है। जो भोजन हम करते हैं वह मांसपेशियों, नसों, नाड़ियो, रक्त और हड्डियों में परिवर्तित हो जाता है। यदि उचित व्यायाम और उचित आहार दिया जाता है तो यह कोश अच्छी तरह से विकसित हो जाता है । स्वस्थ विकास के लक्षण हष्ट-पुष्टता, फुर्ती, सहनशक्ति और धीरज है। इन गुणों वाले व्यक्ति आसानी से गतिक कौशल पर अधिकार पा सकते हैं तथा उनके नेत्र और हाथ का अच्छा समन्वय हो सकता है लिया गया भोजन विभिन्न पोषक तत्वों में परिवर्तित हो जाता हैं और हमें शारीरिक रूप से बढ़ाता है ।

  • यह सबसे बाहरी आवरण है और भौतिक शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।

  • इसे "अन्न" या "भोजन" से पोषित होने वाला शरीर कहा जाता है।

  • यह शरीर, हड्डियाँ, मांसपेशियाँ और अन्य शारीरिक तत्वों से बना होता है।

2.प्राणमय कोश (Pranamaya kosha):- यह प्राण या जीवन ऊर्जा का आवरण है। यह श्वास,रक्त प्रवाह और अन्य जीवन ऊर्जा से संबंधित क्रियाओ को नियंत्रित करता है।

     प्राण यानी वायु पांच प्राण जिनका आयुर्वेद में पांच शारीरिक प्रणालियों के रूप में वर्णन है, इनको प्राणमय कोश कहते हैं । ये गतिविधियां जो शरीर का सहयोग करती हैं, वह सांस द्वारा ली गई हवा के परिणाम स्वरुप होती हैं, इसलिए इसे प्राणमय कोश का नाम दिया गया है । इस कोश में निम्नलिखित पांच प्राण(वायु) सम्मिलित हैं।

  1. प्राण ( प्रत्यक्षीकरण की क्षमता):- यह पांचो ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से पर्यावरण से प्राप्त पांच प्रकार के उद्दीपनों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है।

  2. अपान ( उत्सर्जन की क्षमता):- शरीर द्वारा उत्सर्जित की जाने वाली सभी चीजे जैसे की पसीना, मल मूत्र आदि अपान की अभिव्यक्ति है।

  3. समान ( पाचन की क्षमता):- आमाशय में एकत्रित भोजन का पाचन करता है।

  4. व्यान ( संचरण क्षमता):- यह बच्चे हुए भोजन के परिणाम स्वरुप बने पोषक तत्वों को रक्त के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों को पहुचाता है।

  5. उदान ( चिंतन क्षमता ):- यह वर्तमान स्तर से अपने विचारों को उन्नत करने की क्षमता है जिससे कि एक नए सिद्धांत या विचार स्वशिक्षा की क्षमता की संभावना या सराहना की क्षमता है।

यह पांचो क्षमताए अधिक उम्र के लोगों में धीरे-धीरे कम होती जाती हैं । प्राणमय कोश, अन्नमय कोश को नियंत्रित एवं नियमित करता है। जब प्राण ठीक से काम नहीं करते तो भौतिक शरीर प्रभावित होता है। प्राणमय कोश के स्वस्थ विकास के संकेत उत्साह आवाज को प्रभावी ढंग से प्रयोग करने की क्षमता, शरीर की लोच, दृढ़ता, नेतृत्व, अनुशासन, ईमानदारी और श्रेष्ठ में मिलते हैं।

  • यह जीवन ऊर्जा का आवरण है, जो श्वास और प्राण (जीवन शक्ति) से संबंधित है।

  • यह कोश शरीर के सभी ऊर्जा चैनलों, श्वसन प्रणाली और अन्य ऊर्जा प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।

3.मनोमय कोश (Manomaya Kosha):- यह मन या मस्तिष्क का आवरण है। यह विचार, भावना और मानसिक गतिविधियों से संबंधित है। यह व्यक्ति की मानसिक स्थिति और भावनात्मक प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है। 

मन, प्राणमय कोश को नियंत्रित करता है। उदाहरण के लिए जब मन किसी आघात के कारण परेशान होता है, तब प्राण के कार्यो और शरीर को प्रभावित करता है। मन ज्ञानेंद्रियो की व्याख्या करता है। यह अतीत की अच्छी और बुरी यादों को संग्रहित करता है । नियमित प्रार्थना, संकल्प लेने और उन्हें पूरा करने द्वारा मन की शक्ति में वृद्धि संभव है। मन, वृद्धि और शरीर के बीच ग़हरा संबंध है।

  • यह मन और मानसिक गतिविधियों का आवरण है।

  • इसमें विचार, भावनाएँ, और संवेदी अनुभव शामिल होते हैं।

  • यह कोश हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति और मानसिक प्रतिक्रियाओं को संचालित करता है।

4.विज्ञानमय कोश (Vigyanmaya Kosha):- यह बुद्धि या विवेक का आवरण है। यह ज्ञान, निर्णय लेने की क्षमता और आत्म-जागरुकता से संबंधित है।

   मन ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से बाहरी उद्दीपनों को प्राप्त करता है और अनुक्रियाओं को कर्मेंद्रियो को प्रेषित करता है। यद्यपि पांच ज्ञानेंद्रियो के माध्यम से प्राप्त उद्दीपन अलग और एक दूसरे से भिन्न होते हैं किंतु उनका एकीकृत अनुभव मन के द्वारा लाया जाता है। बुद्धि, विभेदीकरण एवं विवेकीकरण की प्रक्रिया है, जो प्राप्त उद्दीपनों की जांच करके निर्णय लेती है। यह मन को भी इन अनुक्रियाओं के बारे में सूचित करती है,जिन्हें क्रियान्वित किया जाना है । स्मृति के आधार पर मन सुखद या दु:खद छाप को बुद्धि से जोड़ती है। बुद्धि अपनी चिंतन की क्षमता के साथ एक तर्कसंगत निर्णय लेती है जो मन को पसंद नहीं भी हो सकता है, लेकिन अंतत: व्यक्ति के लिए लाभप्रद होता है। मन सभी यादों और ज्ञान का भंडार गृह है। अनुभव का यह भंडार गृह, व्यक्ति के कार्यों का मार्गदर्शन कारक है। मन को संवेगों के केंद्र स्थल के रूप में वर्णित किया जा सकता है और बुद्धि उन क्षेत्रों की जांच करती है जिसमें वह कार्य करते हैं। मन की पहुंच केवल ज्ञात जगत तक है लेकिन बुद्धि अज्ञात स्थान में जाकर उसकी जांच कर सकती है, मनन कर सकती है और नई खोजो को पूरी तरह समझ सकती है।

  • यह बुद्धि और विवेक का आवरण है।
  • यह ज्ञान, तर्क, निर्णय लेने की क्षमता और आत्म-जागरूकता से संबंधित है।

  • यह कोश हमें सही और गलत का ज्ञान कराता है और हमें आत्मनिरीक्षण करने की क्षमता प्रदान करता है।

5. आनंदमय कोश (Anandamaya Kosha):- यह सबसे आंतरिक और सूक्ष्म आवरण है और आनंद या परमानंद का प्रतिनिधित्व करता है । यह आत्मा या आत्म स्वरूप का सबसे शुद्ध और उच्चतम स्तर है।

  आनंदमय कोश विज्ञानमय कोश को नियंत्रित करता है। क्योकि जब अन्य सभी कोश अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं तब हम आंतरिक और बाह्य जगत के बीच सद्भाव का अनुभव करते हैं। यह सद्भाव हमें प्रसन्नता और आनंद की अनुभूति देता है।

  • यह सबसे आंतरिक और सूक्ष्म आवरण है, जो आनंद और परमानंद का प्रतिनिधित्व करता है।

  • यह आत्मा का सबसे शुद्ध और उच्चतम स्तर है, जहाँ व्यक्ति परम शांति और आनंद का अनुभव करता है।

  • इस कोश में आत्मसाक्षात्कार और आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है।

     कोशो का विकास:-

खाने की नियमित आदतों, सही प्रकार का भोजन, व्यायाम और खेल, टहलना, घूमना और आसन से अन्न कोश के विकास में सुविधा होती है। प्राणायाम और सांस लेने के अभ्यास से प्राणमय कोश की गुणवत्ता में सुधार होता है। मनोमय कोश के विकास के लिए अच्छे साहित्य, कविता, उपन्यास, निबंध और लेख का अध्ययन उपयोगी होता है। ऐसी सभी गतिविधियां जो किसी की बुद्धि को चुनौती दें,विज्ञानमय कोश का विकास करती हैं । इन गतिविधियों में बहस करना, समस्या सुलझाना, अध्ययन की तकनीक, छोटे अनुसंधान, परियोजनाओं मूल्यांकन और पुस्तकों की सराहना या प्रख्यात व्यक्तियों का साक्षात्कार शामिल है। ऐसी सभी गतिविधियां जो आपको, अपने लघु रूप से परे जाने और उसको अपने साथी प्राणियों, अपने देश और पूरे विश्व के साथ तादात्म्य स्थापित करने का अवसर देती हैं। यह आनंद में कोष के विकास को सुविधा पूर्ण बनाता है।

पंचकोश की अवधारणा यह बताती है कि मानव अस्तित्व कई परतों में होता है । जो शारीरिक से लेकर आध्यात्मिक स्तर तक फैली होती है । योग और ज्ञान की प्रथाएं इन कोषों के साथ काम करके व्यक्तिगत विकास और आत्म साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन करती।

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