SLR (Statutory Liquidity Ratio) – वैधानिक तरलता अनुपात
SLR का पूरा नाम: Statutory Liquidity Ratio (वैधानिक तरलता अनुपात)
परिभाषा: SLR वह न्यूनतम राशि होती है जो बैंकों को अपने कुल डिपॉजिट का एक निश्चित प्रतिशत, सरकार द्वारा अनुमोदित प्रतिभूतियों (जैसे सरकारी बॉन्ड, सोना या नकद) के रूप में अपने पास रखना अनिवार्य होता है। यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा तय किया जाता है।
उद्देश्य:
- बैंकिंग सिस्टम में तरलता बनाए रखना।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना।
- बैंकों की उधारी क्षमता को सीमित करना।
वर्तमान SLR दर: (RBI द्वारा समय-समय पर तय की जाती है, उदाहरण हेतु: 18.00%)
उदाहरण: यदि किसी बैंक के पास ₹100 करोड़ की जमा राशि है, और SLR 18% है, तो बैंक को ₹18 करोड़ वैधानिक तरलता के रूप में रखना होगा।
SLR और CRR में अंतर:
बिंदु | SLR | CRR |
---|---|---|
रखने का माध्यम | सरकारी बॉन्ड, सोना या नकद | केवल नकद |
बैंक कहाँ रखता है | स्वयं के पास | RBI के पास |
परीक्षा उपयोगी तथ्य:
- SLR का सीधा प्रभाव बैंकों की उधारी क्षमता पर पड़ता है।
- यह एक मौद्रिक नीति उपकरण है।
- SLR को घटाने से बैंक अधिक लोन दे सकते हैं।
निष्कर्ष: SLR भारत की मौद्रिक नीति का एक आवश्यक भाग है, जो वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण तथा बैंकों की तरलता को संतुलित करने का कार्य करता है।