वैदिक गणित प्राचीन भारतीय गणितीय पद्धति है, जो वेदों से उत्पन्न हुई है। इसे ऋषि भारती कृष्ण तीर्थजी ने 20वीं सदी में पुनः प्रस्तुत किया। वैदिक गणित की विधियां सरल और त्वरित हैं, जो जटिल गणितीय समस्याओं को आसानी से हल करने में मदद करती हैं। इसमें 16 सूत्र और 13 उपसूत्र होते हैं, जो जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्गमूल और घनमूल जैसी गणनाओं को तेज़ी से करने में सहायक होते हैं। इसका उपयोग प्रतियोगी परीक्षाओं और छात्रों के लिए अत्यधिक लाभदायक है क्योंकि यह समय और मेहनत बचाता है।
वैदिक गणित के मुख्य लाभ:
1.गणना में तेजी:- यह प्रणाली जटिल समस्याओं को सरल विधियों के माध्यम से तेजी से हल करने में सक्षम है।
2.आसानी से सीखा जा सकता है:- इसके सूत्र और तकनीकें सरल होती हैं, जिन्हें बच्चे और बड़े आसानी से सीख सकते हैं।
3.समस्या हल करने के कई तरीके:- इसमें एक ही समस्या को हल करने के कई तरीके होते हैं, जिससे लचीलेपन और रचनात्मकता का विकास होता है।
4.मानसिक गणना में मदद:- वैदिक गणित मानसिक गणना को बढ़ावा देता है, जिससे कैलकुलेटर की आवश्यकता कम होती है।
16 मुख्य सूत्र (Main Sutras)
सूत्र | अर्थ |
---|---|
1.एकाधिकेन पूर्वेण | पिछले अंक से एक अधिक जोड़ें |
2.निखिलम नवतश्चरम दशतः | संपूर्ण से 9 घटाएं और अंतिम से 10 घटाएं |
3.उर्ध्व तिर्यग्भ्याम | लंबवत और विकर्ण तरीके से गुणा |
4.परावर्त्य योगेण | प्रत्यावर्ती रूप से जोड़ें |
5.षुण्यं साम्यसमुच्चये | यदि एक ही पक्ष में समानता हो, तो उसे शून्य मानें |
6.आनुरूप्येण शून्यमन्यत् | अनुरूपता होने पर दूसरा शुन्य होगा |
7.संकलन-व्यवकलनाभ्याम | जोड़ने और घटाने से |
8.पूर्णापूर्णाभ्यां | पूर्ण और अपूर्ण से |
9.चलनकलनाभ्याम | चलन और कलन की क्रिया से |
10.यावदूनम | जितना कम |
11.व्यष्टिसमष्टिः | विभाजन और संयोजन द्वारा |
12.शेषाण्यङ्केन चरमेण | अंतिम अंक से शेषांक द्वारा |
13.सोपान्त्यद्वयमन्त्यं | अंतिम और इसके पूर्व के दो अंकों के साथ |
14.एकन्यूनेन पूर्वेण | पिछले अंक से एक कम |
15.गुणितसमुच्चयः | गुणन का योग समान होता है |
16.गुणकसमुच्चयः | गुणन का योग समान गुणांक होता है |
13 उपसूत्र (Sub-sutras):
1.अनुरूप्येण (अनुपात द्वारा)
2.शिष्यते शेषसंज्ञ (जो शेष रहता है उसे शेष मानें)
3.आद्यमाद्येनान्त्यमान्त्येन (पहला पहले के साथ, और अंतिम अंतिम के साथ)
4.केवल सर्गणयाम् (केवल संयोजन द्वारा)
5.व्यस्तिसमस्ति (संयोजन और विखंडन)
6.मध्यमाध्येन (मध्य अंकों का उपयोग करके)
7.उदाहरणम् (उदाहरण द्वारा)
8.सर्वे समुच्चयेऽवशिष्टेऽशेषे (जब योगफल पूर्ण हो तो शेषांक शून्य होता है)
9.षुण्यं यत् स्यात् संज्ञा (शून्यता की अवधारणा)
10.अन्यत् (अन्य प्रकार)
11.पूरणापूरणाभ्याम् (पूरक द्वारा)
12.विसर्गप्रवाह (बहाव और विसर्जन)
13.लोपुरम् (शेषांक और अवशिष्ट)
ये सूत्र और उपसूत्र मिलकर जटिल गणितीय समस्याओं को तेज़ी से हल करने का एक अनूठा और आसान तरीका प्रदान करते हैं।
उदाहरण सहित व्याख्या:-
1.एकाधिकेन पूर्वेण | :- (पिछले अंक से एक अधिक जोड़ें) |
एकाधिकेन पूर्वेण वैदिक गणित का एक प्रमुख सूत्र है, जिसका उपयोग विशेष रूप से उन संख्याओं के वर्ग (square) निकालने में किया जाता है जिनका अंतिम अंक 5 हो। इसका शाब्दिक अर्थ है "पिछले अंक से एक अधिक जोड़ना"। यह सूत्र तेज़ी से गणना करने के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
सूत्र का सिद्धांत:
यदि हमें किसी संख्या का वर्ग निकालना हो और उसका अंतिम अंक 5 हो, तो:
1.संख्या के पहले अंकों को लें (जो 5 से पहले के अंक होते हैं)।
2.उस संख्या में 1 जोड़ें।
3.दोनों का गुणा करें।
4.अंत में, 25
25 जोड़ें (क्योंकि 5²= 25)।
उदाहरण 1: 25²
1.25 का प्रथम अंक 2
2. 2+1 = 3
3.2 x 3 = 6
4.अंतिम अंक 5 का वर्ग 25 लिखे
25²= 625
35 का वर्ग=3x4\25=1225
2.निखिलम नवतश्चरम दशतः | संपूर्ण से 9 घटाएं और अंतिम से 10 घटाएं |
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